Bhagavad Gita Shlok 1.3 (Chapter 1 Verse 3) – Simple Explanation & आत्म‑चिंतन - radhakrishnaquotes.com
श्लोक (Geeta Chapter 1, Shloka 3):
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता॥
Transliteration:
paśyaitāṁ pāṇḍu-putrāṇām ācārya mahatīṁ camūm
vyūḍhāṁ drupada-putreṇa tava śiṣyeṇa dhīmatā
Hindi Translation (सरल अर्थ):
हे आचार्य! देखिए पाण्डवों की इस विशाल सेना को, जो आपके ही बुद्धिमान शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा सजाई गई है।
English Translation:
Hey, just look at that powerful army lined up on the other side — the sons of Pandu. Impressive, right? And guess who put it all together? None other than the clever son of Drupada… yeah, the same guy who once learned from you — your own student!.
चलो अब इसे दिल से समझते हैं – जैसे एक सच्चा दोस्त समझाता है…
Dost,
Kabhi tere saath aisa hua hai?
Ki tune kisi को कुछ सिखाया हो… और वो एक दिन तुझसे ही आगे निकल गया हो?
Ya fir tu kisi ke बहुत करीब रहा हो… aur वो आज किसी और के साथ खड़ा हो?
बस यही feeling है इस श्लोक में।
क्या हो रहा है Battlefield पर?
ये महाभारत की शुरुआत है… युद्ध अभी शुरू नहीं हुआ।
दुर्योधन डर रहा है…
लेकिन सच बताऊँ… वो डर तो रहा है अंदर से, पर उस डर को छुपा रहा है — गुस्से की शक्ल में, चालाक बातों में, और तानों में ढालकर।
वो अपने गुरु द्रोणाचार्य से कहता है —
“देखिए आचार्य! देखिए ये कितनी बड़ी सेना है पांडवों की।
और उसे सजाया है आपके ही शिष्य ने… धृष्टद्युम्न ने!”
दुर्योधन की चालाकी:
ये सिर्फ जानकारी नहीं है, ये एक ताना है।
धृष्टद्युम्न कौन है? द्रुपद का पुत्र… और द्रुपद ने द्रोण का अपमान किया था।
अब उसी के बेटे को द्रोण ने खुद शिक्षा दी थी।
सोचो! जिसे आपने ज्ञान दिया, वो आज आपके ही सामने खड़ा हो…
आपके पुराने शत्रु की सेना का सेनापति बनकर!
अंदर की हलचल (Inner Conflict):
गुरु द्रोण को ये कैसे महसूस हुआ होगा?
एक ओर उनका धर्म कहता है — "तुम गुरु हो, निष्पक्ष रहो।"
दूसरी ओर उनका मन कहता है — "जिसने तुम्हें नीचा दिखाया था, उसी का बेटा आज तुम्हारे सामने खड़ा है!"
अब इसे अपनी ज़िंदगी से जोड़ो…
Kya tune kabhi kisi ko दिल से कुछ सिखाया hai?
Aur ek din वो तुझसे बेहतर बन गया… ya तुझे छोड़कर किसी और के साथ जुड़ गया?
कितना अजीब लगता है ना?
Ek taraf गर्व होता है… ki usne seekha…
Doosri taraf hurt bhi feel hota hai… ki usne "apna" nahi samjha।
Shlok 1.3 humein kya sikhata hai?
- शब्दों का खेल खतरनाक होता है: दुर्योधन ने एक ही लाइन में कई तीर छोड़े।
- गुरु और शिष्य का रिश्ता sacred होता है: लेकिन राजनीति उसमें भी हस्तक्षेप कर देती है।
- वक़्त बदलता है, पर संस्कार याद रहते हैं: आचरण ही असली परीक्षा है।
- Success हमेशा sweet नहीं होती: ऊपर चढ़ने वालों के मन में भी guilt हो सकता है।
Ek choti si real-life kahani:
एक गांव से आया लड़का था। एक शिक्षक ने उसे पढ़ाया, गाइड किया, और भरोसा दिया।
वो लड़का IAS बन गया। एक दिन वही टीचर के सामने आया और बोला:
“Thank you sir… par ab system aapka nahi, mera hai.”
Sir मुस्कुरा दिए… उस मुस्कान में गर्व कम, और खालीपन ज़्यादा था।
मन की गहराई से सोचो...
Dost,
जीवन में तुझे ऐसे लोग मिलेंगे — जो तुझे सिखाएंगे, संभालेंगे, ऊपर उठाएंगे।
और फिर कभी ऐसा दिन आएगा, जब वो तेरे नीचे खड़े होंगे… या सामने।
उस दिन तू कैसा बर्ताव करेगा — वही तेरी पहचान है।
Spiritual Angle – ये सब Maya hai?
Geeta सिखाती है कि ये roles, रिश्ते, पहचान — सब "Leela" है।
आज तू शिष्य है, कल गुरु बनेगा।
पर अंत में — तेरा कर्म ही तेरा धर्म है।
द्रोणाचार्य अगर भावनाओं में बह जाते, तो वो ‘गुरु’ नहीं रह जाते।
Conclusion – दिल से सीखो, पर Ego मत जोड़ो
Geeta का हर श्लोक भीतर की लड़ाई की सीख देता है।
Shlok 1.3 सिखाता है कि:
- किसी को सिखाओ तो निस्वार्थ भाव से
- उनसे ईर्ष्या मत करो अगर वो आगे निकल जाए
- और जो तुम्हें नीचा दिखाए, उसे अपने कर्मों से जवाब दो
आज का आत्म-चिंतन:
- क्या मैं किसी के विकास से जलता हूं?
- क्या मैं अपने शिक्षक का आदर करता हूं, भले ही वो अब मेरे से कम हैं?
- क्या मैं अपने शब्दों से दूसरों को नीचे दिखाने की कोशिश करता हूं?
तूफान से पहले की शांति…
यह श्लोक युद्ध से पहले की शांति जैसा है — पर इसमें मन का तूफान छुपा है।
Geeta हमें उस अंदर की हलचल को देखने की शक्ति देती है।
अंत में...
Agar tu yeh post yahan tak padh chuka hai… To sach me tujhme Geeta ko समझने की जिज्ञासा hai.
Main bas itna bolunga — हर श्लोक में खुद को ढूंढो… हर लाइन में अपने जीवन को पहचानो।
Prem se bolo — श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी…